छत्तीसगढ थापना परब अउ बुचुआ के सुरता

सोला साल के राज्‍य के स्‍थापना दिवस बर एक जुन्‍ना कहानी-

बुचुआ के गांव म एक अलगे धाक अउ इमेज हे, वो हर सन 68 के दूसरी कक्षा पढे हे तेखरे सेती पारा मोहल्ला म ओखर डंका बाजथे । गांव के दाउ मन अउ नवां नवां पढईया लईका मन संग बराबर के गोठ बात करईया बुचुआ के बतउती वो हर सन 77 ले छत्तीसगढ राज के सपना संजोवत हे तउन ह जाके 2000 म पूरा होये हे ।
सन 1977 म मनतरी धरमपाल गुप्ता के झोला मोटरा ल धरईया बुचुआ ह शहर अउ गांव म मेहनत करत करत 30 साल म छत्तीसगढ के बारे म जम्मो जानकारी ल अपन पागा म बंधाए मुडी म सकेल के धरे हे, नेता अउ कथा कहिनी लिखईया घर कमइया लग लग के ।
छत्तीसगढ के जम्‍मो परब तिहार, इतिहास अउ भूगोल ला रट डारे हे । कहां नंद, मौर्य, शंगु, वाकाटक, नल, पांडु, शरभपुरीय, सोम, कलचुरी, नाग, गोड अउ मराठा राजा मन के अटपट नाव ला झटपट याद करे रहय । रतनपुर अउ आरंग के नाम आत्‍ते राजा मोरध्‍वज के कहनी ला मेछा म ताव देवत बतावै । गांव म नवधा रमायन होवय त बुचुआ के शबरीनरायन महात्‍तम तहां लव कुश के कथा कहिनी ला अईसे बतावै जईसे एदे काली के बात ये जब छत्तीसगढ म लव कुश जनमे होये ।




भागवत कथा सुने ल जाय के पहिली बीर बब्रूवाहन के चेदिदेश के कथा सुनावै अउ मगन होवय कि वोखर छत्तीसगढ हर कतका जुन्‍ना ये । लीला, नाचा, गम्‍मत होतिस त बुचुआ ह कवि कालीदास के मेघदूत के संसकिरित मंतर के टूटे फूटे गा के बतावै कि सरगुजा म संसार के सबले पुराना नाटक मंच हे जिहां भरत मुनि ह सबले पहिली राम लीला खेलवाए रहिसे । वोखर रामगिरी के किस्‍सा ल सुन के नवां पढईया टूरा मन बेलबेलातिन अउ बुचुआ संग टूरा मन पथरा म लिखाए देवदासी अउ रूपदक्ष के परेम कहानी ला सुनत सुनावत ददरिया के तान म मगन हो जातिस ।
कोनो ल पुस्‍तक देखतिस तभो शुरू हो जतिस भाई रे हमर छत्‍तीसगढ म छायावाद के पहिली कविता कुकरी कथा लिखे गे रहिसे, इन्‍हें ले पहिली हिन्‍दी किस्‍सा हा जागे रहिसे । तहां ले कालिदास के संसकिरित चालू हो जातिस । पुस्‍तक धरईया कुलेचाप हूं, हां कहत टसक मारतिस ।
अडबड किस्‍सा हे गांव म बुचुआ के पूरा पुरान ये छत्‍तीसगढ के । सन अउ तारीख संग छत्‍तीसगढ अंदोलन के दिन बादर के उतार चढाव ला मुअखरा बुचुआ मेर पूछ लेवव । थोरकन बात ला खोल भर तो देव, तहां बुचुआ के पोगा चालू, बीच बीच म बेटरी चारजिंग बर चोगीं माखुर भर देत रहव । हार थक के सुनईया मन ला जुर मिल के कहे ल लागय ‘जय छत्‍तीसगढ’ ‘जय छत्‍तीसगढ’ । तहां ले जय कहे के भोरहा म बुचुआ के धियान हा भरमावै तहां ले बात ल सम्‍हारे बर तीर बईठे कोनो सियान हा बुचुआ ल टप ले पूछै ‘चमरासहिन डोली के धान कईसे हे बाबू ‘ तब जाके बुचुआ के महात्‍तम सिरावै ।




बुचुआ के बिहई बुधियारिन ला बुचुआ के बात ल हंसी ठ्ठा म उडावत देख के, अडबड दुख होवै, फेर बुचुआ ये, कि वोला कुछु फरके नई परय । वो तो अपन छत्‍तीसगढ महतारी के सिरतोन बेटा, महिमा गाये ल छोडबेच नई करय, कोनो हांसै कि थूंकै ।
आज बुचुआ ला बिहिनिया बिहिनिया नहा धो के मार चिकचिक ले तेल चुपरे, नवां बंगाली तेखर उपर मा जाकिट मारे, नवां पचहथ्‍थी धोती संग बजनी पनही पहिरे । चरर चरर खोर म किंजरत देख के बुधियारिन कहिथे ‘का हो आज सुरूज बुडती डहर ले उही का, बिहिहनया ले मटमट ले सम्‍हर पखर के कहां जाए बर सोंचत हौ, ओलहा जोंते बर नई जाना हे का, जम्‍मा ओल सिरा जही त सुरता करहू ।‘
बुचुआ के बजनी पनही के चुरूर चुरूर थम गे, करिया तश्‍मा ला माई अंगरी मा नाक कोती खरकावत बुचुआ कथे ‘अरे छोटकी के दाई नई जानस का ओ आज हमर छत्‍तीसगढ राज के जनम दिन ये, तेखर सेती रईपुर जए बर तियार हौं बीस ठन रूपिया दे देतेस।‘
बुधियारिन अपन काम बुता गोबर कचरा में बिपतियाये रहय बुचुआ के गोठ ला सुनिस तहां ले बगिया गे, बंगडी पढे लगिस ‘ का हो हम न तो छठी छेवारी उठायेन न तो कांके पानी पीयेन अउ तूहू मन चह नई पीये अव, फेर काबर मटमटाथौ । का मिल गे राजे बन गे हे त, कोन मार हमर दुख हा कम होगे । उही कमई दू पईली अउ खवई दू पईली ।‘
‘नवां राज म राशन सोसईटी खुले के झन खुले गांव गांव म दारू भट्ठी जरूर खुल गे, जिंहा गांव के जम्‍मो पईसा सकलाए लागिस, घरो घर म दुख ह अमाय लागिस ।‘
‘रूखमिन के बेटी ला गांव म खुले दारू भट्ठी के संडा मन जनाकारी कर दिस पेट भरा गे अउ संडा मन भगा गे । पुलिस उल्‍टा रूखमिन के डउका ला ओलिहा दीस ।‘
‘कहां सटक गे रहिस तोर महिमा हा जहां तोर माता के सिरतोन बेटी ला तोर मोसी बडी के बेटा मन थिथोलत रहिन अउ तोरे भाई पुलिस मन रूखमिन ला बीच गांव के गुडी म चकला चलाथर रे छिनार कहिके डंडा म ठठात रहिन ।‘
‘का महिमा गाये, दिया जराये, नवां कुरथा पहिरे ले रूखमिन के दुख हेराही ।‘
‘छोटकी के बाबू नेता मन बर राज बने हे हमर मन बर तो उही काल उही आज । ‘
दुरिहा भांठा म नवां खुले स्‍कूल ले लईका मन के ‘जय छत्‍तीसगढ’ ‘जय छत्‍तीसगढ’ के नारा के आवाज हा बुधियारिन के करलई म तोपा गे ।

संजीव तिवारी

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